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शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला.
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
कठिन भक्ति देखी Shiv chaisa प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
जय सविता Shiv chaisa जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥